जयपुर – राजस्थानी सिनेमा के जाने-माने चेहरे राजवीर गुर्जर बस्सी के शब्द आज जयपुर की सड़कों पर गूंज उठे, “अपनी ही धरती पर परदेसी…”। यह दर्द सिर्फ उनका नहीं, बल्कि उन सैकड़ों कलाकारों का था जो राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए थे।
त्रिवेणी नगर से रिद्धि सिद्धि तक पैदल मार्च करते हुए, इन कलाकारों ने अपनी मातृभाषा के प्रति उपेक्षा और राजस्थानी सिनेमा की दयनीय स्थिति पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया। बस्सी के नेतृत्व में यह आंदोलन एक सवाल खड़ा करता है – क्या राजस्थानी कलाकारों की अनदेखी अब बर्दाश्त के बाहर हो गई है?
“हमारी भाषा, हमारा हक!”
यह नारा लगाते हुए, कलाकारों ने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की अपनी पुरानी मांग को दोहराया। उनका तर्क है कि जब तक राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलती, तब तक उनकी भाषा और संस्कृति का ह्रास जारी रहेगा।
राजस्थानी सिनेमा की दुर्दशा
राजवीर गुर्जर बस्सी ने राजस्थानी सिनेमा की दुर्दशा पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब देश के अन्य क्षेत्रीय सिनेमा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं, तब राजस्थानी सिनेमा संघर्ष कर रहा है। उन्होंने सरकार से राजस्थानी सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने का आग्रह किया।
आंदोलन की धमक
यह आंदोलन महज एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि राजस्थानी कलाकारों के सब्र का बांध टूटने का संकेत है। वे अब अपनी भाषा और संस्कृति के लिए लड़ने को तैयार हैं। राजवीर गुर्जर बस्सी ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों को अनसुना किया गया तो आंदोलन और तेज होगा।
सरकार के लिए चुनौती
यह आंदोलन राजस्थान सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस जन आक्रोश को कैसे संबोधित करती है। क्या वह राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देकर कलाकारों की भावनाओं का सम्मान करेगी या फिर उनकी अनदेखी जारी रखेगी?
प्रश्न जो अनुत्तरित हैं:
- क्या सरकार राजस्थानी कलाकारों की मांगों पर गंभीरता से विचार करेगी?
- क्या राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलेगी?
- अगर सरकार मांगें नहीं मानती है तो आंदोलन किस दिशा में जाएगा?
आने वाले दिनों में इस आंदोलन के क्या रुख लेते हैं, इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं।